जहां तक एकता सप्ताह की बात है तो मेरा ख़याल है कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की इस महान पहल की अहमियत पहले से कहीं ज़्यादा उजागर हो गई है। जिस दिन इमाम ख़ुमैनी ने एकता सप्ताह का एलान किया था और अपने सार्वजनिक, राजनैतिक व सामाजिक रुझानों व नीतियों में इस्लामी मतों की एकता की घोषणा की थी, उस दिन इस संदेश के बहुत से वास्तविक संबोधक इस संदेश की अहमियत को नहीं समझ सके, जैसे बहुत से इस्लामी देशों के अधिकारी बिलकुल ही यह नहीं समझ पाए कि यह संदेश कितना अहम है। दूसरे भी बहुत से लोग समझ नहीं पाए, बहुत से लोगों ने ज़िद कर ली यानी अपने विभिन्न लक्ष्यों व हितों के कारण उन्होंने इस संदेश की अनदेखी कर दी। आज हम समझ रहे हैं कि यह संदेश कितना अहम था। आज जो घटनाएं हुई हैं, विभिन्न इस्लामी देशों के बीच जो तरह तरह के मतभेद हुए हैं, क्षेत्र के कुछ देशों में जो भयंकर घटनाएं हुई हैं, सीरिया में, इराक़ में, कुछ समय के लिए लीबिया में, यमन में और अफ़ग़ानिस्तान में, ये सब घटनाएं जो यहां हुई हैं, उनसे इंसान की समझ में आता है कि इस्लामी जगत की एकता कितनी अहम थी और इस्लामी समुदाय की एकजुटता कितनी मूल्यवान थी जिसकी इमाम ख़ुमैनी ने घोषणा की, उसके लिए निवेदन किया, उस पर आग्रह किया और अगर वह एकता होती तो इनमें से बहुत सी घटनाएं नहीं होतीं।