rss https://hindi.khamenei.ir/feed/service/13524 hi नमाज़ में इस जुमले को दोहराने की वजह https://hindi.khamenei.ir/news/8702 एक बार हम अल्लाह से कहें कि ऐ अल्लाह! हमे सही रास्ता दिखाता रह। अगर सही रास्ता, यही रास्ता है तो इंसान एक बार बैठकर दुआ कर दे, सौ बार या हज़ार बार दुआ मांगे और बात ख़त्म हो जाए, यह रोज़ रोज़ दोहराने की वजह क्या है? मुझे लगता है कि हर दिन दोहराने की वजह यह है कि हमेशा ऐसे रास्ते मौजूद हैं कि अगर इंसान से ग़लती हो जाए तो वह "अल्मग़ज़ूबे अलैहिम" और 'ज़ाल्लीन' की पंक्ति में चला जाए और अगर वह सही तरीक़े से समझ जाए तो वह "अनअम्ता अलैहिम" की पंक्ति में पहुंच जाएगा जो पैग़म्बरों, नेक बंदों, सिद्दीक़ीन, शहीदों और सालेहीन की पंक्ति है और ये वे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह की नेमत को बचाए रखा। हमें अल्लाह की नेमत को बचाए रखना चाहिए और उसमें कमी नहीं आने देना चाहिए, इसलिए हम हर नमाज़ में कहते हैं कि अल्लाह हमें सीधे रास्ते की हिदायत करता रहा ताकि हम उसकी ओर से ग़ाफ़िल न हो जाएं। इमाम ख़ामेनेई 16 मई 1997 Tue, 01 Apr 2025 09:15:00 +0330 .. /news/8702 दूसरेः जिन पर तेरा क़हर व ग़ज़ब नाज़िल हुआ https://hindi.khamenei.ir/news/8693 अल्लाह ने पैग़म्बरों और औलिया को भी नेमत अता की है और बनी इस्राईल को भी। "मग़ज़ूबे अलैहिम" यानी जिन पर तेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ और 'ज़ाल्लीन' यानी गुमराह लोग भी उनमें शामिल हैं जिन्हें अल्लाह ने अपनी नेमत अता की है। यह नहीं सोचना चाहिए कि अल्लाह कुछ लोगों को नेमत देता है और कुछ को गुमराह करता है और उन पर ग़ज़ब करता है, ऐसा नहीं है। "अल्मग़ज़ूबे अलैहिम", "अनअम्ता अलैहिम" की सिफ़त है। फिर भी जिन लोगों को अल्लाह ने नेमतें दी हैं, वे दो तरह के हैं: एक वे जिन्होंने अपने कर्म से, अपनी सुस्ती से, अपनी गुमराही से नेमत को बर्बाद कर दिया। दूसरे वे हैं जिन्होंने कोशिश और शुक्र के ज़रिए नेमत को बाक़ी रखा। बनी इस्राईल भी उन लोगों में से थे जिन्हें अल्लाह ने बड़ी नेमत अता की थी और उन्हें दूसरों पर फ़ज़ीलत मिल गयी थी लेकिन वे अल्लाह के ग़ज़ब का निशाना बन गए। हमारी कसौटी और हमारा मानदंड, सीधे रास्ते पर चलने वाला वह पथिक होना चाहिए जिसे अल्लाह ने नेमत अता की हो और जो उसके ग़ज़ब का निशाना न बना हो।  इमाम ख़ामेनेई 10 जूलाई 2013   Sun, 30 Mar 2025 11:00:00 +0330 .. /news/8693 पहलेः जिन पर तूने इनाम व एहसान किया https://hindi.khamenei.ir/news/8690 पहली ख़ुसूसियत यह है कि उन पर इनाम व एहसान किया हो। क़ुरआन में कहा गया है कि अल्लाह ने पैग़म्बरों को भी, सिद्दीक़ीन को भी, शहीदों को भी और सालेहीन को भी नेमतें दी हैं। उन्होंने सत्य के रास्ते को तलाश कर लिया, गुमराह भी नहीं हुए और अल्लाह के क्रोध का निशाना भी नहीं बने। ये वे लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने भरपूर नेमत दी, उन पर क्रोधित नहीं हुआ और वे लोग अपनी पाक सीरत और दृढ़ता की वजह से ज़रा भी गुमराही की ओर नहीं बढ़े। इसकी सबसे बड़ी मिसाल अहलेबैत और इमाम अलैहेमुस्सलाम हैं। यही वह रास्ता है जिस पर हमें चलना चाहिए। अब अगर दुनिया में ज़्यादातर लोग दूसरी तरह की बात करते हैं, दूसरी तरह अमल करते हैं तो हमें अल्लाह की हिदायत को मानने या उसे रद्द करने के लिए अपनी अक़्ल और दीन को कसौटी बनाना चाहिए। मोमिन और मुस्लिम जगत, वह उम्मत है जो क़ुरआन मजीद से, अल्लाह की हिदायत से मानदंड हासिल करता है। यही ठोस मानदंड है।  इमाम ख़ामेनेई  10 जुलाई 2013 Sat, 29 Mar 2025 09:24:00 +0330 .. /news/8690 सीधे रास्ते पर चलने वाले https://hindi.khamenei.ir/news/8689 सूरए अलहम्द में हमें सीधे रास्ते पर चलने वालों की निशानियां बतायी गयी हैं: " रास्ता उन लोगों का जिन पर तूने इनाम व एहसान किया" सिराते मुस्तक़ीम या सीधा रास्ता उन लोगों का जिन्हें तूने नेमत दी है। ज़ाहिर सी बात है कि यह नेमत खाना, पीना नहीं है, अल्लाह की ओर से मार्गदर्शन की नेमत है...अध्यात्मिक नेमत है जो सबसे बड़ी नेमत है। ये उन लोगों की राह है जिन्हें तूने नेमत अता की है, उन पर क्रोधित नहीं हुआ और वे गुमराह भी नहीं हुए। ये तीन ख़ुसूसियतें होनी चाहिएः अल्लाह ने मार्गदर्शन की नेमत दी हो, उन्होंने अपने बुरे कर्म से उस नेमत को अल्लाह के क्रोध का पात्र न बनाया हो और गुमराह भी न हुए हों। ये शर्त जिन लोगों पर पूरी उतरती है उन्हें आप अपने ज़माने में, अतीत में, इस्लाम के आरंभिक दिनों में और इतिहास में बड़ी आसानी से तलाश कर सकते हैं। इमाम ख़ामेनेई 11 जून 1997 Fri, 28 Mar 2025 18:27:00 +0330 .. /news/8689 सीधा रास्ता, इच्छाओं को कंट्रोल करना https://hindi.khamenei.ir/news/8683 क़ुरआन मजीद के आग़ाज़ में ही सूरए अलहम्द में अल्लाह से हमारी दरख़ास्त "हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद मांगते हैं" से शुरू होती है। इस मदद तलब करने का एक बड़ा मक़सद अगली आयत में आता हैः "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह।" मानो यह सारी तैयारी, इस इबारत के लिए हैः "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह।" फिर सूरए अलहम्द के आख़िर तक इस सीधे रास्ते की व्याख्या की जाती है। सीधा रास्ता, अल्लाह की बंदगी का रास्ता है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करना। इस्लाम इच्छाओं को ख़त्म नहीं करता, उन्हें कंट्रोल करता है, क्योंकि ये इच्छाएं आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। इस्लाम इन इच्छाओं को लगाम लगाता है और उनका दिशा निर्देश करता है। इस्लाम यौनेच्छा को ख़त्म नहीं करता बल्कि उस पर लगाम लगाता है। धन दौलत की इच्छा को ख़त्म नहीं करता क्योंकि ये तरक़्क़ी का साधन हैं लेकिन इसे कंट्रोल करता है, यानी हिदायत करता है। इमाम ख़ामेनेई 6 मार्च 2000 Thu, 27 Mar 2025 10:44:00 +0330 .. /news/8683 सीधा रास्ता, दीन की पहचान, धार्मिक हुक्म और अल्लाह पर ईमान पर बाक़ी रहना https://hindi.khamenei.ir/news/8682 सूरए अनआम की आयत 161 में पैग़म्बरे इस्लाम से कहा गया हैः "आप कहें! बेशक मेरे परवरदिगार ने मुझे बड़े सीधे रास्ते की रहनुमाई कर दी है यानी उस सही और सच्चे दीन की तरफ़ जो बातिल से हटकर सिर्फ़ हक़ की तरफ़ राग़िब इब्राहीम (अ) की मिल्लत है..." यानी दीन का मतलब दीनी विचार, पहचान और अमल है और इसे सीधा रास्ता कहा गया है। सूरए निसा की आयत नंबर 175 में कहा गया हैः " तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और मज़बूती से उसका दामन पकड़ा..." इस्मत यानी ख़ता से महफ़ूज़ रखा गया जिसमें लड़खड़ाना मुमकिन न हो, तो अल्लाह उन्हें अपनी रहमत और फ़ज़्ल के विशाल दायरे में दाख़िल करेगा और सीधे रास्ते की ओर उनकी रहनुमाई करेगा। इससे पता चलता है कि सीधे रास्ते पर पहुंचने का ज़रिया अल्लाह से जुड़े रहना है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Wed, 26 Mar 2025 10:13:00 +0330 .. /news/8682 सीधा रास्ता, लोगों को अल्लाह और पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत की राह पर लाने के लिए जद्दोजेहद https://hindi.khamenei.ir/news/8681 सूरए साफ़्फ़ात की आयत 118 में हज़रत मूसा और हज़रत हारून के बारे में कहा गया हैः "और हमने (ही) इन दोनों को राहे रास्त दिखाई।" अगर आप हज़रत मूसा और हज़रत हारून की ज़िंदगी पर नज़र डालें तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी कि इन दोनों की ज़िंदगी सरकश का अनुपालन न करने और अल्लाह के अलावा किसी और के हुक्म को न मानने और इस राह में यानी लोगों के मार्गदर्शन, उन्हें सरकश शासन से मुक्ति दिलाने और उन्हें अल्लाह के आदेश के पालन के दायरे में लाने के लिए निरंतर संघर्ष और इस राह में मुसीबत बर्दाश्त करने की तस्वीर पेश करती है। सूरए यासीन की आयत नंबर 3 और 4 में पैग़म्बरे इस्लाम से अल्लाह फ़रमाता हैः "यक़ीनन आप (स) (ख़ुदा के) रसूलों में से हैं। (और) सीधे रास्ते पर ही हैं।" जैसा कि आपने हज़रत मूसा की ज़िंदगी में देखा, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम की सीरत, उनका व्यवहार, उनकी राह भी वही सीधा रास्ता है।   इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Tue, 25 Mar 2025 10:31:00 +0330 .. /news/8681 सेरात, तरीक़ और सबील जैले लफ्ज़ों में फ़र्क़ https://hindi.khamenei.ir/news/8680 क़ुरआन मजीद में राह या रास्ते के लिए कई लफ़्ज़ इस्तेमाल हुए हैं। 'तरीक़' जब एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर कोई बढ़ता है जबकि उस पर न कोई निशान है, न उसे समतल किया गया है, बस कोई एक फ़र्ज़ किए हुए रास्ते पर चलने लगे तो उसे तरीक़ कहते हैं। इस रास्ते में कोई ख़ुसूसियत नहीं सिवाए इसके कि कोई रास्ता चलने वाला उस पर चले। तो यह एक आम मानी है। 'सबील' के मानी इससे ज़्यादा सीमित हैं, यह वह रास्ता है जिस पर चलने वाले ज़्यादा हैं। सबील ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वालों की ज़्यादा तादाद की वजह से वह समतल और स्पष्ट हो गया है, अलबत्ता मुमकिन है कभी इंसान इस रास्ते को खो दे। 'सिरात' पूरी तरह स्पष्ट रास्ते को कहते हैं। यह रास्ता इतना स्पष्ट है कि इस रास्ते को खो देना मुमकिन नहीं है। "इहदेनस्सिरात" यानी बिल्कुल साफ़ रास्ता दिखा, उस पर 'अलमुस्तक़ीम' की शर्त भी लगा दी यानी बिल्कुल साफ़ और सीधा रास्ता दिखा। इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Mon, 24 Mar 2025 11:58:00 +0330 .. /news/8680 क़ुरआन की शब्दावली में "सीधा रास्ता" https://hindi.khamenei.ir/news/8678 सीधा रास्ता हक़ीक़त में क्या है? यह सीधा रास्ता क्या है जिसकी ओर हम अल्लाह से हिदायत चाहते हैं? जिनके योग से समझा जा सकता है कि सीधा रास्ता क्या है।सूरए आले इमरान की आयत 51 में अल्लाह फ़रमाता हैः "बेशक अल्लाह मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है तो तुम उसकी इबादत करो, यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत में सीधा रास्ता क्या है? बंदगी; बंदगी के मक़ाम तक पहुंचना। मानव इतिहास में आपको जो ये गुमराहियां, ये पीड़ाएं, ये ज़ुल्म बहुत ज़्यादा नज़र आते हैं उसकी वजह वे लोग हैं जिन्होंने अल्लाह की बंदगी को क़ुबूल नहीं किया बल्कि वे अपनी इच्छाओं के ग़ुलाम थे। एक दूसरी आयत है। सूरए यासीन की आयत नंबर 61 में आया हैः "हाँ अलबत्ता मेरी इबादत करो कि यही सीधा रास्ता है।" तो इस आयत के मुताबिक़ सीधा रास्ता अल्लाह की बंदगी है, ख़ुदा की बदंगी करना यानी अल्लाह के सामने समर्पित होना। इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Sun, 23 Mar 2025 10:57:00 +0330 .. /news/8678 सारे इंसानों के लिए उचित है कि वे अल्लाह से हमेशा हिदायत की दरख़ास्त करें https://hindi.khamenei.ir/news/8674 कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि जब क़ुरआन पढ़ते वक़्त, नमाज़ पढ़ते वक़्त "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहते हैं, तो हम हिदायत याफ़्ता हैं; इसका जवाब यह है कि हम अल्लाह से ज़्यादा से ज़्यादा हिदायत की दरख़ास्त करें, क्योंकि उसकी ओर से हिदायत का दायरा बहुत व्यापक है। पैग़म्बरे इस्लम भी कहते थे "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" पैग़म्बरे इस्लाम भी अल्लाह से हिदायत चाहते थे, क्यों? क्योंकि जो हिदायत पैग़म्बरे इस्लाम के पास थी, मुमकिन है उसमें और इज़ाफ़ा हो जाए; इंसान के कमाल का दायरा बहुत व्यापक है जिसकी हदबंदी नहीं की जा सकती।  दूसरा बिंदु यह है कि इंसान के सामने हमेशा दो रास्ते होते हैं, इंसान की वासनाएं, इंसान की इच्छाएं, इंसान के भीतर अस्वस्थ जज़्बे कभी भी ख़त्म नहीं होते, नेक बंदे भी बड़े ख़तरे के निशाने पर हैं...कभी कभी हम ऐसे दो राहे पर होते हैं कि सही रास्ते का चयन नहीं कर पाते तो बार बार "हमें सीधे रास्ते की (और उस पर चलने की) हिदायत करता रह" कहने का मतलब यह है कि हर क्षण हमें अल्लाह की ओर से हिदायत की ज़रूरत है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991  Sat, 22 Mar 2025 11:36:00 +0330 .. /news/8674 मोमिनों के एक समूह से मख़सूस हिदायत https://hindi.khamenei.ir/news/8667 हिदायत की एक चौथी क़िस्म भी है जिसका नाम हमने "मोमिनों के एक गिरोह से मख़सूस हिदायत" रखा है। यह सारे मोमिनों के लिए भी नहीं है बल्कि उनमें से ख़ास लोगों से मख़सूस है। यह बहुत ही आला स्तर की हिदायत है जो पैग़म्बरों और अल्लाह के विशेष दोस्तों से मख़सूस है। सूरए अनआम की आयतें पैग़म्बर से कहती हैं कि "ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत दी है तो आप भी उनके रास्ते और तरीक़े पर चलें" (सूरए अनआम, आयत-90) अल्लाह के चुने हुए बंदे उसकी ओर से कुछ चीज़ें, कुछ इशारे, कुछ ख़ास हिदायतें हासिल करते हैं। आप देखते हैं कि किसी को क़ुरआन की कोई आयत सुनाई जाती है तो उसके आंसू बहने लगते हैं, उसका दिल बदल जाता है, वह कुछ ख़ास चीज़ समझता है। यह वह मख़सूस हिदायत है। इंसान का स्तर जितना ऊपर उठता वह कुछ इशारे हासिल करता है, उस आयत के कुछ लफ़्ज़ उनके लिए एक हिदायत लिए होते हैं जो हमारे लिए नहीं हैं। ये सभी अल्लाह की हिदायतें हैं, हिदायत का यह मानी मुराद है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Fri, 21 Mar 2025 11:01:00 +0330 .. /news/8667 यमन के अवाम, यमन के लोगों पर यह हमला, यह भी अपराध है जिसे अवश्य रोका जाना चाहिए। https://hindi.khamenei.ir/news/8663 यमन के अवाम, यमन के लोगों पर यह हमला, यह भी अपराध है जिसे अवश्य रोका जाना चाहिए। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नौरोज़ के पैग़ाम से 20 मार्च 2025   Thu, 20 Mar 2025 14:31:00 +0330 .. /news/8663 ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। https://hindi.khamenei.ir/news/8662 ग़ज़ा पर क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन का दोबारा हमला, बहुत बड़ा अपराध और त्रासदी को जन्म देने वाला है। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के नौरोज़ के पैग़ाम से 20 मार्च 2025   Thu, 20 Mar 2025 14:28:00 +0330 .. /news/8662 हिदायत के मानी और क़िस्में https://hindi.khamenei.ir/news/8659 एक हिदायत है जो मोमिनों से मख़सूस है "हिदायत है उन परहेज़गारों के लिए" (सूरए बक़रह, आयत-2) यह उस हिदायत के ऊपर है जो इंसान के वजूद में पायी जाती है, जिसे ईमान की ओर हिदायत कहते हैं। इसी हिदायत का ज़िक्र सूरए नह्ल में है कि जो लोग अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, अल्लाह उनकी हिदायत नहीं करता। इसका क्या मतलब है कि अल्लाह हिदायत नहीं करता? क्या इसका मतलब यह है कि ये लोग फिर कभी मोमिन नहीं बन सकते? उन्हें कभी ईमान की हिदायत हासिल नहीं हो सकती? क्यों नहीं, जो ईमान नहीं रखता, मुमकिन है कि उसके पास आज ईमान न हो, कल वह अपनी अक़्ल और अपनी फ़ितरत की ओर लौट आए और ईमान ले आए, तो यह ईमान की हिदायत नहीं है, तीसरी क़िस्म की हिदायत है, वह हिदायत मोमिनों से मख़सूस है।   इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Thu, 20 Mar 2025 11:26:00 +0330 .. /news/8659 अल्लाह की ओर से हिदायत के मानी और क़िस्में https://hindi.khamenei.ir/news/8657 हिदायत के मानी रहनुमाई करने और रास्ता दिखाने के हैं। अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत के कई चरण और कई मानी हैं। एक आम स्तर की हिदायत है जिसमें कायनात की सभी चीज़ें शामिल हैं। यह हिदायत वजूद मिलने से जुड़ी है, यह आम हिदायत है और सब चीज़ें इसके दायरे में आती हैं। जिस स्वभाव के तहत चीटियां या शहद की मक्खियां ख़ास तरीक़े से अपना घर बनाती हैं और सामाजिक तौर पर ज़िंदगी गुज़ारती हैं, उसका स्रोत अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत है। हमारी मुराद यह हिदायत नहीं है। हिदायत की एक क़िस्म इंसान से मख़सूस है, एक निहित समझ जो अल्लाह के वजूद और कुछ धार्मिक शिक्षाओं की ओर उसकी रहनुमाई करती रहती है। आप अल्लाह को अक़्ल से पहचानते हैं। फ़ितरत और अक़्ल के अलावा अल्लाह को पहचानने का कोई और ज़रिया नहीं है। यही इंसान की अक़्ल की हिदायत है लेकिन यहां हमारी मुराद यह हिदायत भी नहीं है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991 Wed, 19 Mar 2025 13:14:00 +0330 .. /news/8657 सारी ताक़त अल्लाह के पास है https://hindi.khamenei.ir/news/8655 सारी ताक़त पर उसका कंट्रोल है। जहाँ अल्लाह इरादा कर लेता है वहाँ दुनिया की मज़बूत ताक़तें भी अपने काम अंजाम नहीं दे पातीं। अमरीका, ईरान में दाख़िल होना चाहता है, तबस में उस पर मुसीबत आ जाती है हालांकि उसके पास ज़ाहिरी ताक़त थी। इस वक़्त भी साम्राज्यवादी ताक़तें, बड़े ज़ायोनी और पूंजीपति, एक इस्लामी सरकार से बुरी तरह भयभीत हैं। कोशिश कर रहे हैं कि उसे ख़त्म कर दें लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए हैं जबकि ज़ाहिरी तौर पर उनके पास सब कुछ है। जब अल्लाह इरादा करता है कि उसकी ताक़त असर न कर पाए तो वह असर नहीं करती। कभी अल्लाह का इरादा यह होता है कि वह ताक़त असर करे, तो असर करती है। मोमिन और एकेश्वरवादी इंसान, ताक़त को सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह से विशेष समझता है।  इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Tue, 18 Mar 2025 14:20:00 +0330 .. /news/8655 सिर्फ़ अल्लाह से मदद मांगने का मतलब https://hindi.khamenei.ir/news/8654 जब हम कहते हैं "इय्याका ना’बुदो व इय्याका नस्तईन" क्या इसका मतलब यह है कि किसी भी दूसरे से मदद नहीं लेनी चाहिए? हम, लोगों से, इंसानों से, भाई से, दोस्त से मदद लेते हैं। ख़ुद क़ुरआन मजीद में भले काम के लिए एक दूसरे से मदद लेने की सिफ़ारिश की गयी हैः "भलाई और तक़वे में एक दूसरे की मदद करो।" इसका मतलब यह है कि तौहीद को मानने वाला इंसान, हर ताक़त का स्रोत अल्लाह को मानता है और जो भी आपकी मदद करता है, वह सक्षम नहीं है बल्कि अल्लाह सक्षम है। वास्तविक ताक़त और शक्ति, अल्लाह की है। ये हमारी ताक़तें अवास्तविक हैं। अगर आप किसी से अल्लाह को नज़रअंदाज़ करके मदद लें और उसे ताक़त व शक्ति का स्वामी समझें तो यह शिर्क है। इमाम ख़ामेनेई  24 अप्रैल 1991 Mon, 17 Mar 2025 17:23:00 +0330 .. /news/8654 इच्छाओं से संघर्ष, सरकश ताक़तों के ख़िलाफ़ संघर्ष की बुनियाद  https://hindi.khamenei.ir/news/8652 अगर इंसान उस क़ाबिज़ बादशाह पर जो उसके भीतर है -यानी उस वास्तविक तानाशाह पर- हावी होने में कामयाब हो जाए तो फिर वह दुनिया की सबसे बड़ी ताक़तों को हराने में कामयाब हो जाएगा। यह कोई शेर नहीं, कोई निबंध नहीं बल्कि यह खुली हक़ीक़तें हैं। हमने इस्लामी इंक़ेलाब के दौरान, पूरी तरह से इन चीज़ों को देखा है। अगर कुछ लोगों ने अपनी इच्छाओं पर क़ाबू पा लिया तो बलिदान देंगे और कोई क़ौम बलिदान दे तो कोई भी ताक़त उसे हरा नहीं पाएगी। दुश्मन तब हम पर फ़तह हासिल करता है जब हम अपनी इच्छाओं को क़ाबू नहीं कर पाते। इंसान की हार का पहला चरण, ख़ुद उसकी भीतरी हार है। जब ईर्ष्या और देखा-देखी और इसी तरह की चीज़ें इंसान पर हावी हो जाती हैं तो उसका इरादा डावांडोल होने लगता है और जब आपका इरादा डावांडोल होने लगता है तो दुश्मन का हाथ मज़बूत हो जाता है। यह एक स्वाभाविक सी बात है।  इमाम ख़ामेनेई  24 अप्रैल 1991 Sun, 16 Mar 2025 10:17:00 +0330 .. /news/8652 बंदगी के लिए अल्लाह से मदद मांगने का मतलब https://hindi.khamenei.ir/news/8648 अल्लाह से मदद चाहने का मतलब यह है कि मैं ऐब और ग़लतियों का पुतला इंसान, अगर अपनी पूरी सलाहियतों को भी तेरी बंदगी और इबादत में लगा दूं, तब भी मैंने तेरी बंदगी और इबादत का हक़ अदा नहीं किया है, तुझे मेरी अतिरिक्त मदद करनी चाहिए ताकि मैं यह हक़ अदा कर सकूं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैहि व आलेही वसल्लम और इमाम अलैहेमुस्सलाम जैसे महापुरूष कहते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी बंदगी का हक़ अदा नहीं कर सके। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जैसी हस्तियां अल्लाह की बंदगी का हक़, जिसके वह योग्य है, अदा न कर पाने की बात करती हैं जबकि ये हस्तियां अल्लाह की बंदगी में जो काम करती थीं, हम उसके बारे में सोच भी नहीं सकते।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Sat, 15 Mar 2025 17:54:00 +0330 .. /news/8648 हम तुझ से ही मदद चाहते हैं कि सिर्फ़ तेरी ही बंदगी करें न किसी ग़ैर की https://hindi.khamenei.ir/news/8646 "व इय्याका नस्तईन" और सिर्फ़ तुझ ही से मदद चाहते हैं। किस चीज़ में तुझसे मदद चाहते हैं? इस चीज़ में कि हम सिर्फ़ तेरी ही बंदगी करें, किसी दूसरे की नहीं। अल्लाह के अलावा किसी की बंदगी न करना ज़बान से तो बहुत आसान है लेकिन अमल में यह सबसे मुश्किल कामों में है; व्यक्तिगत ज़िंदगी में भी बहुत कठिन है और सामाजिक ज़िंदगी में भी कठिन है, एक क़ौम की हैसियत से भी कठिन है और आप इसकी कठिनाइयों को देख रहे हैं कि जब इस्लामी गणराज्य ने बड़ी ताक़तों के मुक़ाबले में तौहीद का पर्चम उठा रखा है, इससे भी ज़्यादा कठिन हमारे भीतर के उस शैतान और सरकश को भगाना है, यह उससे भी ज़्यादा कठिन है। इच्छाओं और वासनाओं की तुलना में अमरीका से मुक़ाबला आसान है, इच्छाओं से लड़ना कठिन है, उस जंग की बुनियाद भी यह जंग है।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Fri, 14 Mar 2025 13:34:00 +0330 .. /news/8646 तौहीद को मानने वाले की अल्लाह की इबादत में पूरी सृष्टि के साथ समानता https://hindi.khamenei.ir/news/8645 हम तेरी इबादत करते हैं; इस 'हम' के दायरे में कौन लोग हैं? उसमें एक मैं हूँ। मेरे अलावा, समाज के बाक़ी लोग हैं; 'हम' के दायरे में पूरी इंसानियत का हर शख़्स है न सिर्फ़ तौहीद को मानने वाले बल्कि वे भी हैं जो तौहीद को नहीं मानते और अल्लाह की इबादत करते हैं। जैसा कि हमने कहा कि उनकी फ़ितरत में अल्लाह की इबादत रची बसी है, उनके भीतर जिससे वे अंजान हैं, अल्लाह की इबादत करने वाला और अल्लाह का बंदा है; हालांकि उनका ध्यान इस ओर नहीं है। इससे भी ज़्यादा व्यापक दायरा हो सकता है जिसमें पूरी कायनात को शामिल माना जाए यानी पूरी कायनात अल्लाह की बंदगी का मेहराब हो। मैं और कायनात के सभी तत्व, सारे जीव-जन्तु तेरी इबादत करते हैं; यानी कायनात का हर ज़र्रा, अल्लाह की बंदगी की हालत में है, यह वह चीज़ है कि इंसान अगर इसे महसूस कर ले तो समझिए वह बंदगी के बहुत ऊंचे दर्जे पर पहुंच गया है। वह तौहीद के इस नग़मे को पूरी कायानात में सुनता है, यह एक हक़ीक़त है। मुझे उम्मीद है कि अल्लाह की बंदगी और इबादत में हम ऐसे स्थान पर पहुंच जाएं कि इस सच्चाई को महसूस कर सकें।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Thu, 13 Mar 2025 21:52:00 +0330 .. /news/8645 अल्लाह की बंदगी का स्वाभाविक होना https://hindi.khamenei.ir/news/8639 इस आयत के अंतर्गत एक अहम बिन्दु यह है कि यह बंदगी, इंसान की फ़ितरत में मौजूद है; इंसान अपने स्वभाव के तक़ाज़े के तहत ताक़त के एक बिन्दु, ताक़त के एक ऐसे केन्द्र की ओर आकर्षित होता है जिसे वह अपने से श्रेष्ठ समझता है और उसके सामने समर्पित हो जाता है। यह इंसान की रूह और उसके वजूद में है। चाहे इस ओर उसका ध्यान हो या न हो। दुनिया की सारी बंदगी, अल्लाह की बंदगी है; यहाँ तक कि मूर्ति पूजने वाला भी अपने दिल में, अल्लाह को पूजता है; लेकिन जिस चीज़ की वजह से उसका यह काम ग़लत हो गया है वह उस श्रेष्ठ ताक़त की पहचान में ग़लती है। धर्मों का रोल यह है कि वे इंसान के सोए हुए ज़मीर को जगाएं, उसकी आँख खोलें और कहें कि वह श्रेष्ठ ताक़त कौन है। उस हद तक जितना इंसान का दिमाग़ उसे समझने की सलाहियत रखता है। इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991 Wed, 12 Mar 2025 12:46:00 +0330 .. /news/8639 इय्याका ना’बुदो का मतलब https://hindi.khamenei.ir/news/8637 "इय्याका ना’बुदो" यानी अल्लाह के सामने इंसान का समर्पित होना। यह अल्लाह की बंदगी और उसकी इबादत का मानी है। अल्लाह और इंसान के बीच संबंध को बहुत से आसमानी धर्मों और इस्लाम में भी समर्पण कहा गया है। अल्लाह का बंदा होने का मतलब है अल्लाह के सामने सिर झुकाने वाला। दूसरी ओर अल्लाह सारी भलाइयों का स्रोत है तो अल्लाह का बंदा होने का मतलब परिपूर्णता, अच्छाइयों और ख़ालिस नूर का बंदा होना है। यह समर्पण अच्छा है। इंसानों का बंदा होना, इंसानों का ग़ुलाम होना, बहुत बुरी चीज़ है क्योंकि इंसान में ऐब हैं, इंसान सीमित हैं, इसलिए उनका बंदा होना इंसान के लिए ज़िल्लत है। ज़ालिम ताक़तों का बंदा होना, इंसान के लिए ज़िल्लत है, इच्छाओं का ग़ुलाम होना, इंसान के लिए ज़िल्लत व रुसवाई है। इसलिए बंदगी उन चीज़ों में से नहीं है जो हर जगह अच्छी या हर जगह बुरी हो, बल्कि कहीं पर बंदगी अच्छी हो सकती है और कहीं पर बुरी। अल्लाह का बंदा होना बहुत ही उत्कृष्ट अर्थ रखता है।  इमाम ख़ामेनेई 10 अप्रैल 1991 Tue, 11 Mar 2025 09:43:00 +0330 .. /news/8637 अल्लाह के मालिक होने और हमारे मालिक होने में फ़र्क़ https://hindi.khamenei.ir/news/8635 दुनिया में हमारे पास मालेकाना हक़ के नाम पर एक चीज़ है। यह वास्तविक स्वामित्व नहीं है बल्कि किसी और के ज़रिए दिया गया स्वामित्व है। यहाँ तक कि हम अपने जिस्म के भी मालिक नहीं हैं। हम अपने जिस्म के कैसे मालिक हैं कि इस जिस्म में आने वाले बदलाव हमारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सामने आते हैं और उन्हें कंट्रोल करना हमारे बस में नहीं है? इस जिस्म में दर्द होता है, यह जिस्म मिट जाता है और इस पर हमारा कोई अख़्तियार नहीं होता। हम दुनिया में बहुत सी चीज़ों को अपनी संपत्ति समझते हैं। इस कमज़ोर से स्वामित्व पर ही इंसान फ़ख़्र करता है, क़यामत में यह थोड़ा सा स्वामित्व भी नहीं होगा। क़यामत में हमारे शरीर के अंग हमारे ख़िलाफ़ बोलेंगे और वहाँ सामने आने वाली सारी बातें इंसान के अख़्तियार के दायरे से बाहर होंगी।   इमाम ख़ामेनेई 10 अप्रैल 1991 Mon, 10 Mar 2025 15:05:00 +0330 .. /news/8635 "मालिके यौमिद्दीन" का मतलब https://hindi.khamenei.ir/news/8631 यानी आपकी ज़िंदगी के उस हिस्से का मालिक व मुख़्तार जहाँ आपका कोई अमल नहीं है, केवल जज़ा है -दुनिया के इस छोटे से टुकड़े में आपने जो किया, उसकी जज़ा- अल्लाह है; हर चीज़ उसके अख़्तियार में है। वहाँ अब वह स्वामित्व नहीं है जो हम और आप इस दुनिया में बहुत ही ख़ामियों से भरे समझौते के दिखावटी मालिक होते हैं। इमाम ख़ामेनेई 10 अप्रैल 1991 Sun, 09 Mar 2025 13:31:00 +0330 .. /news/8631